‘मिशन 350’ का लक्ष्य पाना चाहती है भाजपा

punjabkesari.in Tuesday, Feb 14, 2023 - 04:18 AM (IST)

इस वर्ष 9 राज्यों में चुनाव होने के कारण सबकी निगाहें इन पर टिकी हुई हैं। ये 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक ट्रेलर और सैमीफाइनल होगा। नतीजे बताएंगे कि क्या भाजपा मतदाताओं को अपनी ओर खींचती है या कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्ष आगामी चुनावों में भाजपा को हरा देगा। क्षेत्रीय दल संभावित रूप से अपने-अपने क्षेत्र की रक्षा करना चाहेंगे। 9 चुनावी राज्यों में छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और 4 पूर्वोत्तर राज्य मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा हैं। 

चुनाव कार्यक्रम साल भर चलना है। मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में फरवरी-मार्च के बीच और कर्नाटक में अप्रैल-मई के बीच चुनाव होंगे वहीं छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में इस साल के अंत में चुनाव होंगे। 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद पहली बार जम्मू और कश्मीर में भी चुनाव हो सकते हैं। कांग्रेस, भाजपा और क्षेत्रीय दल सभी इस चुनावी जंग को लड़ रहे हैं। अपने सभी संसाधनों को व्यवस्थित कर रहे हैं। जिन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस मुख्य दावेदार हैं उनमें कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्य शामिल हैं। कांग्रेस राजस्थान, छत्तीसगढ़, भाजपा कर्नाटक और मध्य प्रदेश में शासन कर रही है। 2 प्रतिशत का स्विंग किसी भी तरह से परिणाम को बदल देगा। 

भाजपा अपना और विस्तार करना चाहती है जबकि कांग्रेस फिर से सिर उठाने के लिए संघर्षरत है। वह पहले ही उत्तर पूर्वी राज्यों को खो चुकी है जो एक समय में भाजपा के लिए उसका गढ़ था और भाजपा ने हर जगह अपने पैर लगातार पसारे हैं। यहां तक कि कम्युनिस्ट भी त्रिपुरा को भाजपा के हाथों हार गए हैं। इस तरह के उच्च दाव के साथ कांग्रेस के लिए सबसे खराब स्थिति राजस्थान और छत्तीसगढ़ को हारना है और अन्य 7 राज्यों में से किसी को भी नहीं जीतना है। सबसे अच्छी स्थिति यह है कि जो कुछ कांग्रेस के पास है उसे बनाए रखा जाए तथा और अधिक हासिल किया जाए। भाजपा अपने मिशन मोड पर है। लोकसभा में 350 सीटें प्राप्त करना उसका घोषित लक्ष्य है। प्रधानमंत्री मोदी को हैट्रिक बनाने में सक्षम बनाने के लिए यह सब किया जा रहा है। 

भाजपा प्रमुख जे.पी. नड्डा ने इस महीने चुनावी बिगुल फूंक दिया है। भाजपा कार्यकत्र्ताओं को कहा गया है कि इस वर्ष सभी 9 विधानसभा चुनाव जीतने के लिए तैयार रहें। पार्टी को पिछड़े वर्गों, एस.सी. और एस.टी. के वोट मिल रहे हैं और भाजपा उन्हें प्रतिनिधित्व दे रही है। यह पार्टी के संकल्प को दर्शाता है। मोदी के उत्तर पूर्व में प्रचार करने और राहुल की भारत जोड़ो यात्रा पर कांग्रेस का ध्यान केंद्रित करने के साथ दोनों दलों ने अपने चुनावी अभ्यास शुरू कर दिए हैं। हैट्रिक की उम्मीद लगाए तेलंगाना के महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव जैसे प्रमुख क्षेत्रीय खिलाड़ी भी 2023 की चुनावी जंग की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा अपना दक्षिण पर फोकस करना चाहती है जिसमें 129 सीटें हैं, जिनमें से पार्टी के पास मात्र 29 सीटें हैं। 25 सीटें कर्नाटक से आती हैं। पार्टी कम से कम 50 सीटें जीतना चाहती है लेकिन क्षेत्रीय क्षत्रपों की दक्षिणी राज्यों में मजबूत पकड़ है फिर चाहे ये तेलंगाना हो या केरल। 

त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लव कुमार देब के अनुसार, ‘‘आगामी 2023 विधानसभा चुनाव वामदलों के लिए अंतिम यात्रा होगी और कांग्रेस एक पोस्टर बन कर रह जाएगी।’’ यह पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा और क्षेत्रीय दलों के बीच अग्नि परीक्षा होगी। 7 राज्यों में 25 सीटों की गिनती होती है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पूरी होने के बाद कांग्रेसी कार्यकत्र्ता उत्साहित नजर आ रहे हैं। हमें यात्रा के चुनावी असर का इंतजार करना चाहिए। संगठनात्मक एकता एक महत्वपूर्ण चुनौती है विशेषकर राजस्थान, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में, जहां परम्परागत रूप से कांग्रेस ने अतीत में बेहतर प्रदर्शन किया था। पार्टी के आलाकमान को गड़बड़ नहीं करनी चाहिए जैसा कि उसने पंजाब और अन्य जगहों पर किया। उसे अपने सहयोगी दलों को चुनना चाहिए और अपनी ताकत का सही आंकलन करना चाहिए। 

दूसरी बात यह है कि उसे पुराने नेताओं और युवा नेताओं के बीच संतुलन बनाना चाहिए। तीसरा यह है कि कांग्रेस को एक नया, आकर्षक  आख्यान चुनना चाहिए और सही मुद्दों को उठाना चाहिए विशेष तौर पर आम आदमी के लिए रोटी और मक्खन के मुद्दों की तरह। भाजपा के लिए न तो पैसे और न ही संगठन का सवाल है। इन सबसे ऊपर मतदाताओं को रिझाने के लिए भाजपा ‘मोदी के जादू’ पर निर्भर है। हालांकि महंगाई, बेरोजगारी और नौकरियों को लेकर भगवा पार्टी बैकफुट पर है। दक्षिण में इसकी हिन्दुत्व विचारधारा के लिए कोई स्थान नहीं है।

अगर विपक्ष रोटी और मक्खन के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है तो विपक्ष को एक फायदा है। दक्षिण को जीतने के लिए भाजपा को राजवंशों, कल्याणकारी राजनीति और सोशल इंजीनियरिंग से भी लडऩा होगा। के. चंद्रशेखर राव जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों की अभी भी मतदाताओं पर पकड़ है। प्रत्येक दल को जीतने और उपयुक्त गठबंधन में जाने के लिए एक अलग चुनावी रणनीति का उपयोग करना होगा। कांग्रेस को एक अलग कहानी की जरूरत है।-कल्याणी शंकर


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