राजनीति के ‘फीफा’ का फाइनल अब 2024 में खेला जाएगा

punjabkesari.in Friday, Dec 09, 2022 - 06:01 AM (IST)

क्या यही लोकतंत्र है। दो दिन में दो राज्यों, एक छोटा और एक बड़े के अलावा दिल्ली के एम.सी.डी. के चुनाव के नतीजे आए और लोकतंत्र के प्रहरियों यानी जनता ने सबको कुछ न कुछ दिया। किस तरह और कितना दिया, कौन कितना संतुष्ट होगा, इस पर बहस हो सकती है, पर जो उसने निर्णय सुना दिया है, वह फिलवक्त तो अंतिम है। बड़े राज्य गुजरात को भाजपा को, कांग्रेस को मात्र 68 सीटों वाले हिमाचल और आम आदमी पार्टी को दिल्ली नगर निगम की महत्वपूर्ण सत्ता सौंप दी है। 

यही नहीं उपचुनावों में भी बंटवारा ठीक-ठाक हुआ है। मैनपुरी से सपा की डिम्पल यादव भारी अंतर से जीत गई हैं तो विधानसभा के उपचुनावों में बिहार में भाजपा को एक सीट, ओडिशा से बीजू जनता दल को एक, छत्तीसगढ़ और राजस्थान से एक-एक सीट कांग्रेस को और यू.पी. से भाजपा और आर.एल.डी. को एक- एक सीट मिल गई है। यानी सबको कुछ-कुछ, वैसे ही जैसे परिवार का मुखिया अपने घर में हर बड़े मौके पर मेहनत और भविष्य की संभावना के हिसाब से कुछ न कुछ दे ही देता है। लोकतंत्र का खेल भी ऐसा ही है। 

दूसरी तरफ इस लोकतंत्र में राजनीति के उस फीफा की शुरूआत है, जिसका फाइनल 2024 में खेला जाएगा। इस फीफा के पहले लीग मैच में भगवा जर्सी ने गुजरात में गजब धमाका किया है। टीम नरेंद्र मोदी के इस प्रदर्शन के आगे तो बड़े-बड़े मैच फीके हुए हैं। 182 सीट वाली गुजरात विधानसभा में 156 सीटें पाना किसी भी पार्टी के लिए अभूतपूर्व है। इतनी बड़ी जीत के पीछ अवश्य ही बेहद नपी-तुली रणनीति है। ऐसी रणनीति जिसमें गोलरक्षक से लेकर सैंटर फारवर्ड तक सबका खेल लयबद्ध है। 

टीम प्रबंधन भी गजब का है, जो साल भर पहले ही फैसला कर लेता है कि कैप्टन और कितने खिलाड़ी बदल देने चाहिएं। सितम्बर 2021 में जब भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को बदलकर भूपेंद्र पटेल को शपथ दिलाई और उसके बाद मंत्रिमंडल को जिस तरह बदला गया, वह इसी दिन की तैयारी थी। नतीजा सबके सामने है। भाजपा ने इतनी सीटें हासिल कर लीं, जितनी कभी खुद नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए भी पार्टी को नहीं मिलीं। लेकिन यह भी सच है कि गुजरात चुनाव पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरपरस्ती में लड़ा गया। 

इतना ही नहीं भाजपा का प्रचार का तरीका भी बताता है कि चुनाव कैसे जीते जाते हैं। दूसरी ओर विपक्ष के पास भाजपा की रणनीति का कोई तोड़ नहीं दिखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो भाजपा के लिए सैंटर फारवर्ड की तरह थे। उन्होंने जैसे ही प्रचार में मूव बनाए, विपक्ष के गोलरक्षक भौंचक्के रह गए। दूसरी ओर रक्षापंक्ति को संभाल रहे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भगवा टीम ने आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के हर हमले को न सिर्फ विफल किया बल्कि मुंह तोड़ जवाब की रणनीति बनाई। ऐसी खलबली पैदा हुई कि सूरत पूर्व से तो आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ने अपना नाम ही वापस ले लिया। 

कुल मिलाकर इस राजनीति के फीफा में टीम भगवा अर्जेंटीना की टीम की तरह तो बिल्कुल नहीं है, जो सिर्फ मैसी के भरोसे रहती है जो सऊदी अरब जैसी कमजोर और कम अनुभवी टीम के आगे भी बिखर जाए। दिक्कत तब और बढ़ जाती है जब मैसी भी सीधा गोल की तरफ बढऩे की जगह, कॉर्नर की ओर कट लें। आप सिर्फ अपनी पुरानी प्रतिष्ठा से नतीजा नहीं दे सकते। कांग्रेस के इकलौते स्टार राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव से सीधे रुचि दिखाने की जगह जिस तरह भारत-जोड़ो पर खुद को फोकस किया, वह उनके गोल पर फोकस होने की जगह, कॉर्नर लेने की जुगाड़ में रहने की कोशिश ज्यादा लगता है। 

इसके अलावा मैदान में उतरीं नई टीमों ने भी कांग्रेस की मिट्टी पलीत करने में अहम भूमिका निभाई। कांग्रेसी वोटों की लावारिस फसल का बड़ा हिस्सा काटकर वे अपने खलिहान में ले गईं। आम आदमी पार्टी ने पटेल पट्टी में यही खेल किया तो असदुद्दीन ओवैसी ने अल्पसंख्यक वोटों में अच्छी खासी सेंध लगाई। यों आम आदमी पार्टी की विशेषता यह है कि वह भी जल्द ही हार नहीं मानती और अब राष्ट्रीय पार्टी बनने के बाद तो उसके रास्ते और खुलेंगे।

2024 के लिए वो एकला चलो की रणनीति में रहेगी या फिर विपक्ष के साथ यह देखना होगा। उसने कुछ खास खुलासा नहीं किया है लेकिन संभावनाएं यही हैं  कि वह एकला चलो की रणनीति पर चलती रहेगी ताकि अपना आधार और मौजूद करे। शेष विपक्ष के पास अब अगले साल मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे ङ्क्षहदी पट्टी के अहम राज्यों समेत 10 राज्य चुनाव के लिए हैं, मगर बिना किसी बड़ी तैयारी के उसके पास बड़ी चुनौतियां मुंह बाए खड़ी रहेंगी।-अकु श्रीवास्तव


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