टेलीविजन की बदलती तस्वीर, भारत में सालाना 2 करोड़ से ज्यादा हो रही बिक्री

punjabkesari.in Wednesday, Dec 28, 2022 - 08:56 PM (IST)

नई दिल्ली। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि वर्तमान समय में टीवी हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। आजकल, अपने खाली समय में टीवी के सामने बैठकर समाचार सुनना, फिल्में व नाटक देखना या क्रिकेट, फुटबॉल जैसे खेलों का आनंद लेना एक आम बात हो गई है। बच्चे, बूढ़े सभी टीवी का नियमित रूप से उपयोग करते हैं।
 
कोंपैक कंपनी के सीईओ अमिताभ तिवारी ने बताया कि 20वी शताब्दी के पूर्वार्ध में विकसित हुए इस उपकरण को मानव इतिहास के सबसे महान आविष्कारों में गिनना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। बीते सालों में टेलीविजन हमारी दिनचर्या का ऐसे हिस्सा बन गया है कि इसके बिना अपने जीवन की कल्पना करना मुश्किल है। आप यह तर्क दे सकते हैं कि भारत में स्मार्टफोन उपभोक्ता की संख्या बढ़ने के बाद से टीवी का उपयोग कुछ कम हुआ है परंतु इसके बावजूद भी देश के अधिकतर घरों में मोबाइल फोन से ज्यादा टीवी ही इस्तेमाल किया जाता है।
 
इलेक्ट्रॉनिक टीवी ने ली जगह
गौरतलब है कि टीवी के इस्तेमाल की यह स्थिति ज्यादा पुरानी नहीं है। 90 के दशक से पहले टीवी को एक लग्जरी वस्तु ही समझा जाता था, एक ऐसा उपकरण जिसका उपयोग केवल पैसे वाले लोग ही कर सकते थे। धीरे-धीरे टीवी मिडिल क्लास लोगों के घरों में पहुंचने लगा और आज यह स्थिति है कि एक गरीब से गरीब इंसान भी कुछ पैसे जोड़कर एक सस्ता सा टीवी खरीद ही लेता है। इसमें टीवी की मौजूदा कीमतों का भी बहुत बड़ा योगदान है। तकनीकी विकास के कारण आज टीवी के दाम पहले की तुलना में सैकड़ों गुना कम हो गए हैं। समय के साथ टेलीविजन तकनीक में भी काफ़ी बदलाव आ गया है। शुरुआत में मैकेनिकल टीवी अस्तित्व में आया जो पहले से रिकॉर्ड किए गए छायाचित्रों को तुरंत नहीं दिखा पता था। इसी कारण उसका उपयोग कम होता गया और उसकी जगह इलेक्ट्रॉनिक टीवी ने ले ली।

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पहले के इलेक्ट्रॉनिक टेलीविजनों में पिक्चर ट्यूब का इस्तेमाल होता था। टेलीविजन इतिहास में कैथोड रे ट्यूब के आविष्कार को मील का पत्थर माना जाता है क्योंकि इसके कारण ही पिक्चर ट्यूब की उत्पत्ति संभव हो पाई थी। कैथोड रे ट्यूब तकनीक से निर्मित टेलीविजनों ने टीवी बाज़ार में काफी लंबे समय तक एकछत्र राज किया। फिर तकनीकी सुधारों के चलते बाज़ार में कैथोड रे ट्यूब वाले टीवी से बेहतर विकल्प आने लगे और लोगों ने उन्हें अपना लिया। 1980 में विकसित होने वाले डिजिटल लाइट प्रोसेसिंग (डीएलपी) टीवी कैथोड रे की तुलना में अधिक साफ और अच्छी तस्वीरें दिखा रहे थे। डीएलपी टेलीविजनों में करोड़ों की संख्या में छोटे-छोटे पिक्सलों का उपयोग होता था, जो स्क्रीन पर तेज गति से दृश्य दिखाते थे। हालांकि बाज़ार में नई और बेहतर तकनीकों के आ जाने से टीवी कंपनियों ने इसका निर्माण करना भी बंद कर दिया।
 
इसके अलावा 90 व 2000 के दशकों में प्लाज्मा और एलसीडी टीवी भी काफ़ी प्रचलित हुए। प्लाज्मा टीवी की तुलना में एलसीडी टीवी बेहतर तस्वीर दिखाते थे। बाद में एलसीडी टीवी में ही एलईडी लाइट्स लगाने का चलन आया, जिसे एलईडी टीवी भी कहा जाने लगा। एलईडी लाइट्स लगने से एलसीडी टीवी ज्यादा चमकदार दृश्य दिखाने लगे। इसके बाद आए ओलेड और क्युलेड टीवी, जिनने लोगों के टीवी देखने के अनुभव को चार चांद लगा दिए। पहले के टेलीविजनों की तुलना में इनकी स्क्रीन ज्यादा अच्छे रंग दिखाती है। इनके ज्यादा चमकदार और स्पष्ट रंगों ने तस्वीरों को मानो जीवंत कर दिया है। आजकल, Full HD, 4k और 8k टीवी लेना एक आम बात हो गई है।
 
सालाना 2 करोड़ से ज्यादा टीवी बिकते हैं
इतना ही नहीं, भारत में इंटरनेट के विस्तार से जिस तरह स्मार्टफोन्स प्रचलित हुए ठीक उसी तरह अब स्मार्ट टीवी भी काफ़ी लोकप्रिय हो रहे हैं। Android, Tizen और WebOS जैसे ऑपरेटिंग सिस्टमों से लैस टेलीविजन किसी स्मार्टफोन से कम नहीं रह गए हैं। आज के समय में 60-70 इंच के टीवी भी बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं। भारत में सालाना 2 करोड़ से ज्यादा टीवी बिकते हैं। यह आंकड़ा हर साल बढ़ता जा रहा है। ऐसे में ग्राहकों के लिए अच्छी बात यह हुई है कि टीवी के दाम कुछ वर्ष पहले से 500-600% कम हो गए हैं। टीवी निर्माता कंपनियां लगातार ऐसी तकनीकों के शोध में जुटी हुई हैं जिससे लोग कम से कम कीमत चुकाकर आधुनिक टेलीविजन इस्तेमाल कर पाएं।


 


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News Editor

Rahul Singh

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