पुजारा ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास की घोषणा की, ऑस्ट्रेलिया में पहली टेस्ट सीरीज जीत के रहे सूत्रधार
punjabkesari.in Sunday, Aug 24, 2025 - 11:39 AM (IST)

स्पोर्ट्स डेस्क : भारत के दिग्गज बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा ने रविवार को भारतीय क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास की घोषणा कर दी। इस तरह उनके करियर का अंत हो गया, जो जितना यादगार था, उतना ही साहसी भी। उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में भारत के आठवें सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी के रूप में संन्यास लिया। उन्होंने 43.60 की औसत से 7,195 रन बनाए जिनमें 19 शतक शामिल हैं।
पुजारा ने एक भावुक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, 'भारतीय जर्सी पहनना, राष्ट्रगान गाना और हर बार मैदान पर कदम रखते ही अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना - शब्दों में बयां करना असंभव है कि इसका असली मतलब क्या था। लेकिन जैसा कि कहते हैं, सभी अच्छी चीजों का अंत होना ही है, और अपार कृतज्ञता के साथ मैंने भारतीय क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास लेने का फैसला किया है। आप सभी के प्यार और समर्थन के लिए धन्यवाद।'
शांत अनुशासन और अथक परिश्रम की उपज पुजारा की कहानी राजकोट से शुरू हुई, जहां बचपन में वे 3 कोठी ग्राउंड में एक नीम के पेड़ के नीचे अपने पिता अरविंद, जो खुद एक पूर्व प्रथम श्रेणी क्रिकेटर और रेलवे कर्मचारी थे, के मार्गदर्शन में प्रतिदिन हजारों गेंदों का सामना करते थे। यह एक ऐसा सफर है जिसकी कल्पना बहुत कम लोग कर सकते थे और जिसका समापन एक ऐसे करियर में हुआ जिसे उसके धैर्य, धीरज और टेस्ट क्रिकेट के प्रति असीम प्रेम के लिए याद किया जाएगा।
पारी को संभालने और दबाव झेलने की पुजारा जैसी क्षमता बहुत कम लोगों में हैं। उन्हें 2018-19 में ऑस्ट्रेलिया में भारत की ऐतिहासिक पहली टेस्ट सीरीज जीत के सूत्रधार के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। उस सीरीज में उन्होंने 521 रन बनाए, 1,258 गेंदों का सामना किया और तीन शतक लगाए। उनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण था, जिसकी तुलना 1970-71 में वेस्टइंडीज में सुनील गावस्कर के 774 रनों के यादगार प्रदर्शन और उसी सीजन में इंग्लैंड में इस दिग्गज स्पिन तिकड़ी द्वारा लिए गए 37 विकेटों से की जाती है।
पुजारा ऑस्ट्रेलियाई धरती पर भारत की लगातार दो बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी जीत में अहम भूमिका निभाई। उनकी आक्रामक पारी ने विश्वस्तरीय गेंदबाजी आक्रमण को ध्वस्त कर दिया और ऐतिहासिक जीत की नींव रखी। उनके संन्यास के साथ टेस्ट क्रिकेट ने अपने आखिरी सच्चे अवरोधकों में से एक को खो दिया, एक ऐसा बल्लेबाज जिसका तरीका प्रतिभा पर नहीं, बल्कि धैर्य पर आधारित था।