पिता के बलिदान ने बेटी नीतू को बनाया राष्ट्रमंडल खेलों में चैम्पियन, तीन साल से हैं अवैतनिक अवकाश पर

punjabkesari.in Monday, Aug 08, 2022 - 01:04 PM (IST)

बर्मिंघम : युवा भारतीय मुक्केबाज नीतू गंघास ने राष्ट्रमंडल खेलों में अपने पहले स्वर्ण पदक को पिता जय भगवान को समर्पित किया, जिन्होंने अपनी बेटी के सपने को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हरियाणा सचिवालय के कर्मचारी जय भगवान दो बार की विश्व युवा चैंपियन नीतू को प्रशिक्षित करने के लिए पिछले तीन वर्षों से अवैतनिक अवकाश पर है। पिता की बलिदान रविवार को रंग लाया जब नीतू ने महिलाओं के मिनिममवेट (45-48 किग्रा) वर्ग के फाइनल में विश्व चैम्पियनशिप 2019 की कांस्य पदक विजेता रेस्जटान डेमी जेड को सर्वसम्मत फैसले में 5-0 से पराजित कर जीत दर्ज की। 

गले में स्वर्ण पदक पहने नीतू ने कहा, ‘तिरंगे को ऊपर जाते हुए देखना सबसे बड़ा अहसास था, मेरी एक पुरानी इच्छा आज पूरी हो गई। मैं सभी के आशीर्वाद के लिए आभारी हूं। यह पदक देशवासियों और मेरे पिता (जय भगवान) के लिए है।' नीतू ने कहा, ‘कोई कसर नहीं छोड़ा उन्होंने मेरे लिए। वह कई मुश्किल परिस्थितियों से गुजरे लेकिन हमेशा सुनिश्चित किया कि मुझे सर्वश्रेष्ठ मिले। मैं उनके समर्थन के बिना यहां नहीं होती।' 

हरियाणा की 21 साल की यह मुक्केबाज रिंग के अंदर किसी से कम नहीं है लेकिन जब वह खेल क्षेत्र से बाहर निकलती है तो काफी शर्मीले स्वभाव की है। शर्मीलापन इतना कि उनकी बातों को सुनने के लिए ध्यान लगाना पड़ता है। भारतीय टीम के कोच भास्कर चंद्र भट्ट नीतू को ‘गब्बर शेरनी' कह कर बुलाते है। उन्होंने कहा, ‘वह हमेशा से ऐसी (शर्मीले स्वभाव की) ही रही है। शिविर में और शिविर के बाहर ही आप मुश्किल ही उसकी आवाज सुन पाते है। रिंग के अंदर वह ‘गब्बर शेरनी' की तरह है।' 

अपनी ‘आदर्श' और छह बार की विश्व चैंपियन मैरीकॉम के स्थान पर राष्ट्रमंडल खेलों के लिए चुनी गई नीतू यहां अजेय रहीं। नीतू ने कहा, ‘मैरीकॉम मैम की जगह एक अलग ही है। उन्होंने वैश्विक स्तर पर भारतीय मुक्केबाजी को एक पहचान दी है। मैं उनके सामने कहीं नहीं हूं।' 

Content Writer

Sanjeev