स्पोर्ट्स डे : अंडर-25 खेल सितारे जिनसे जुड़ी हैं भारत की उम्मीदें

punjabkesari.in Thursday, Aug 29, 2019 - 03:08 PM (IST)

जालन्धर : खेल सितारों की जिंदगी में एक बात कॉमन मिलेगी कि अगर आपके सपने आपके बहानों से बढ़े है तो निश्चित तौर पर सफलता आपके कदम चूमती है। भारत के पास भी कुछ ऐसे ही खेल सितारे हैं जिनके सपने बहानों से बढ़े हैं। यह वो सितारे हैं जिनसे भारत को भविष्य में बढ़ी उम्मीदें होगी। आइए स्पोर्ट्स डे के उपलक्ष्य पर जानते हैं ऐसे 5 बढ़े स्टार्स के बारे में जो खेलों में भारत का भविष्य हो सकते हैं।

नीरज चोपड़ा  : सड़कों पर करते थे प्रैक्टिस

वल्र्ड अंडर-20 गेम्स में गोल्ड जीतकर चर्चा में आए जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा जब छोटे थे तब सड़कों पर भाला फेंकने की प्रैक्टिस किया करते थे। 1997 में पानीपत में एक किसान के घर जन्मे नीरज मिल्खा सिंह के बाद ऐसे पहले भारतीय एथलीट है जोकि एक ही वर्ष (2018) में कॉमनवैल्थ और एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने में सफल रहे। जैवलिन थ्रो के लिए अपनी जिद्द के कारण नीरज ने 14 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया। उन्हें अर्जुन अवॉर्ड मिल चुका है। वह खेल रत्न के लिए नामांकित हुए हैं।

दीपसन टिर्की : खेतों में पिता के साथ बंटाते थे हाथ


2016 में मेंस हॉकी जूनियर वल्र्डकप में जीतने के बाद टीम के उपकप्तान दीपसन टिर्की चर्चा में आए थे। दीपसन का बचपन गरीबी में बीता। कहा जाता है कि वह किसी की फेंकी हुई हॉकी स्टिक से सड़कों पर हॉकी खेला करते थे। इस दौरान सुबह जल्दी उठकर पिता के साथ खेतों में हाथ बंटाने में भी वह बराबर योगदान देते थे। 21 साल के दीपसन अपनी सफलता का श्रेय भुवनेश्वर स्पोटर््स हॉस्टल को देते हैं, जिन्होंने मुश्किल हालातों में उन्हें संभाले रखा।

रानी रामपाल : जूनियर क्लर्क की नौकरी भी की


हरियाणा की रहने वाली रानी रामपाल इस समय भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान हैं। वह जब छोटी थी तब अपने पिता जोकि ईंटें बेचने का काम करते थे, को हॉकी खेलने से मनाने के लिए उन्हें तीन साल लग गए थे। खराब आर्थिक हालतों के कारण उन्होंने एक समय रेलवे में जूनियर क्लर्क की भी नौकरी की। लेकिन यह खराब हालत उन्हें भारत के लिए 200 इंटरनेशनल मैच खेलने से रोक नहीं पाए। रानी 2013 में जूनियर वल्र्ड कप में ब्रॉन्ज जीतकर चर्चा में आई थी। उन्हें तब प्लेयर ऑफ द टूर्नामैंट भी चुना गया था। 2016 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड मिला था। उनकी कप्तानी में ही भारतीय महिला हॉकी टीम ने 2018 में एशियन गेम्स में सिल्वर जीता था।

साक्षी चौधरी : पहले ही टूर्नामैंट में मिला था लूजर का अवॉर्ड


साक्षी जब भिवानी के एक छोटी से गांव से बॉक्सर बनने की जिद्द लेकर एक बॉक्सिंग कंपीटिशन में गई तो उन्हें बेस्ट लूजर का खिताब मिला था। यही खिताब साक्षी के लिए प्रेरणा का कारण बना। उन्होंने भिवानी बॉक्सिंग क्लब में ट्रेनिंग जारी रखी। हालांकि इस दौरान एक लड़की के बॉक्सिंग सीखने के कारण उनके परिवार को गांव वालों को विरोध भी सहना पड़ा लेकिन साक्षी के दादा ने उनका पूरा साथ दिया। साक्षी ने इसके बाद 15 साल की उम्र में एआईबीए वल्र्ड जूनियर वीमंस चैम्पियनशिप में यूएस चैम्पियन को हराया तो सब ओर उनका नाम दौड़ गया। साक्षी अभी 54 किलोग्राम वेट कैटेगरी की नैशनल चैम्पियन हैं।

मनु भाकर : कई गेम खेली आखिर निशानेबाजी ही रमी


भारतीय निशानेबाजी का भविष्य मानी जाती मनु भाकर का बचपन में किसी एक गेम में ध्यान नहीं था। वह कभी कुछ खेलती थी तो कभी कुछ। उनके पिता राम किशन भी बेटी की इच्छाओं के अनुरूप उन्हें विभिन्न स्पोटर््स की ट्रेनिंग दिलवाते रहे। आखिरकार मनु का मन जब शूटिंग में रमा तो उनके पिता ने उन्हें उच्च स्तर की ट्रेनिंग और पिस्टल दिलवाई ताकि बेटी को कोई परेशानी न आए।

Jasmeet