हमारे 19 खिलाड़ी यो-यो टेस्ट पास हैं, हमें पदक की उम्मीद : मनप्रीत सिंह

punjabkesari.in Friday, Jul 09, 2021 - 07:49 PM (IST)

नई दिल्ली : बचपन में अपनी मां को घर चलाने के लिए संघर्ष करता देख बड़े होकर कुछ खास करना उसका सपना बन गया। पंजाब के मिट्ठापुर  गांव से निकलकर टोक्यो में तिरंगा थामने के मौके तक भारतीय हॉकी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह ने संघर्षों पर सफलता की एक नई कहानी लिख दी है। टोक्यो में 23 जुलाई को ओलिम्पिक के उद्घाटन समारोह में मनप्रीत मशहूर मुक्केबाज एम.सी. मैरीकॉम के साथ भारतीय दल के ध्वजवाहक होंगे। यह सम्मान पाने वाले वह छठे और परगट सिंह (अटलांटा ओलंपिक 1996) के बाद पहले हॉकी खिलाड़ी हैं।

मनप्रीत ने कहा कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह मौका मिलेगा। मुझे पता चला तो मैं स्तब्ध रह गया। पता ही नहीं चला कि क्या बोलूं। मेरे और भारतीय हॉकी के लिए यह बहुत बड़ा पल है। मिट्ठापुर से परगट सर के बाद मैं दूसरा खिलाड़ी हूं जो ओलिम्पिक में भारतीय दल का ध्वजवाहक बनूंगा। भारतीय टीम में 2011 में पदार्पण करने वाले मनप्रीत के लिए मिट्ठापुर से टोक्यो तक के सफर में बहुत कुछ बदल गया।

मनप्रीत ने कहा- मैंने अच्छे खिलाडिय़ों से बहुत कुछ सीखा। जिदंगी में भी काफी उतार-चढ़ाव देखे और अब पीछे मुड़कर देखने पर गर्व होता है कि मैं अपने परिवार का, गांव का और देश का नाम रोशन कर सका। अपने संघर्षों के बारे में उन्होंने बताया कि मेरे पिता दुबई में कारपेंटर का काम करते थे। जब मैं दस साल का था तो वह मानसिक परेशानी के कारण भारत लौट आए और फिर कोई काम नहीं कर सके। हम तीन भाई थे और परिवार में ऐसा कोई नहीं था जो घर चला सके।

मनप्रीत ने कहा कि मेरी मां ने सिलाई वगैरह करके हमें पाला। मैंने अपनी मां को संघर्ष करते देखा है और मैं असहाय महसूस करता था कि छोटा होने के कारण कोई मदद नहीं कर सकता था लेकिन मैने ठान ली थी कि एक दिन अपनी मां को गर्व करने का मौका दूंगा। पंजाब के मिट्ठापुर गांव में ही जन्में परगट सिंह उनके आदर्श थे। उन्होंने कहा कि मैं देखता था कि गांव में उनकी कितनी इज्जत है। वह उस समय डीएसपी थे और मैं बचपन में उनसे मिला तो मंैने कहा कि मैं भी एक दिन आपकी तरह डीएसपी बनूंगा और आज मैं उसी पद पर हूं।

कभी हार नहीं मानने का जज्बा बचपन के संघर्षों से सीखा


मनप्रीत ने कहा कि कभी हार नहीं मानने का जज्बा उन्होंने बचपन के संघर्षों से सीखा। उन्हें सबसे ज्यादा अपने पिता की कमी महसूस हो रही है जो अब इस दुनिया में नहीं हैं । उन्होंने कहा कि मम्मी को जब पता चला कि मुझे यह मौका मिला है तो वह बहुत भावुक हो गई। मैं अपने पिता का लाड़ला था लेकिन मेरी जिदंगी का सबसे अहम पल देखने के लिए वह नहीं हैं। मुझे कप्तान बनते भी वह नहीं देख सके। उनका सपना था कि मैं भारत के लिए खेलूं। मुझे यकीन है कि टोक्यो में जब मैं तिरंगा थामकर चलूंगा तो वह आसमान से कहीं मुझे आशीर्वाद दे रहे होंगे।

ओलिम्पिक में ध्वजवाहक पंजाबी हॉकी सितारे
ओलंपिक में भारत का ध्वजवाहक बनने का सम्मान हॉकी में लाल सिंह बुखारी(1932 लॉस एंजिलिस), मेजर ध्यानचंद (1936 म्युनिख), बलबीर सिंह सीनियर (1952 हेलसिंकी), जफर इकबाल (1984 लॉस एंजिलिस) और परगट (1996 अटलांटा) को मिला है।

मनप्रीत ने कहा-


मैं खुशकिस्मत हूं कि इन लीजैंड के साथ मेरा नाम आयेगा ।मेरे सारे सपने पूरे हो रहे हैं और अब एक ही सपना बचा है, ओलिम्पिक में पदक जीतने का। अपेक्षाओं का दबाव नहीं है बल्कि हम इसे सकारात्मक लेते हैं । हॉकी में ओलिम्पिक पदक के लिए 40 साल से देश इंतजार कर रहा है और अच्छा लगता है कि पूरे देश की दुआएं आपके साथ है और सभी आपको पदक जीतते देखना चाहते हैं।

हमारे 19 खिलाडिय़ों ने योयो टेस्ट पास किया
पिछले चार साल से टीम के कप्तान मनप्रीत ने कहा कि इस टीम में जुझारूपन है और विरोधी टीम के रसूख से यह खौफ नहीं खाती। हमारे 19 खिलाडिय़ों ने योयो टेस्ट पास किया है और फिटनेस में हम किसी से कम नहीं हैं। नीदरलैंड, बेंल्जियम, अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया जैसी बड़ी टीमों के खिलाफ पूरे समय तक एक ऊर्जा के सथ खेल रहे हैं।

तीसरा ओलिम्पिक खेलेंगे मनप्रीत 
अपना तीसरा ओलिम्पिक खेलने जा रहे मनप्रीत ने कहा कि लॉकडाउन में साथ रहते हुए टीम का आपसी तालमेल बेहतरीन हुआ है जो प्रदर्शन में नजर आएगा। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में हमने एक दूसरे के परिवार और संघर्षों के बारे में जाना और एक दूसरे के और करीब आए। ओलिम्पिक में हम सभी एक ईकाई के रूप में इन संघर्षों पर सफलता की नई दास्तान लिखने के इरादे से उतरेंगे।

 

पत्नी इली सिद्दिकी के साथ मनप्रीत।

 

Content Writer

Jasmeet