National Sports Day : जब पं. नेहरू ध्यानचंद से बोले- मुझे अपना एक पदक दे दो

punjabkesari.in Saturday, Aug 29, 2020 - 02:02 PM (IST)

जालन्धर (जसमीत) : मेजर ध्यान चंद का नाम जहन में आते ही सबसे पहले उनका हिटलर के साथ हुआ वार्तालाप याद आता है उसके बाद नीदरलैंड में शक के आधार पर तोड़ी गई उनकी हॉकी स्टिक, ताकि पता ले सके कि कहीं स्टिक में चुंबक तो नहीं लगा। लेकिन मेजर ध्यान चंद को सिर्फ इन 2 किस्सों के कारण ही नहीं जाना जाता। उनकी जिंदगी के साथ और भी कई किस्से जुड़े हैं जो उनके महान होने की गाथा गाते हैं...

मुझे एक पदक दे दो : जवाहर

ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट दिग्गज डॉन ब्रैडमैन भारतीय दौरे पर थे। इस दौरान एक चैरिटी इवेंट में ब्रैडमैन की ध्यानचंद से मुलाकात हुई। ब्रैडमैन बोले- आप क्रिकेट में रनों की तरह गोल करते थे। पास ही में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी थे। उन्होंने कहा- दादा ध्यानचंद, आपके पास बहुत सारे पदक हैं, कृपया मुझे एक दें, ताकि मैं भी इसे डालूं और एक खिलाड़ी की तरह दिखूं। 

जिसने दांत तोड़ा उसे धन्यवाद कहा

1936 के ओलिम्पिक में जर्मनी के साथ एक मैच में ध्यानचंद जर्मनी के गोलकीपर टिटो वार्नहोल्ट्ज के साथ टकरा गए। इसमें ध्यानचंद का एक दांत टूट गया। वह चिकित्सा ध्यान के बाद मैदान पर लौटे और कथित तौर पर खिलाडिय़ों को स्कोरिंग द्वारा ‘सबक सिखाने’ के लिए कहा। टीम इंडिया ने यह मैच 8-1 से जीता था। ध्यान चंद जीतने के बाद टिटो के पास गए। बोले- आपका शुक्रिया। अगर आपने चोट न पहुंचाई होती तो मैं ऐसा नहीं खेल पाता। मुझे उत्साहित देखकर मेरे टीम के साथियों ने भी अच्छा खेल दिखाया जिसके फलस्वरूप हम यह महत्वपूर्ण मैच जीतकर। ध्यानचंद के शब्द सुनकर टिटो लज्जित महसूस करने लगे। उन्होंने फौरन माफी मांगी ली।

...हिटलर की आंखों में डाली आंखें

बर्लिन ओलिम्पिक 1936 में भारतीय टीम ने जर्मनी को फाइनल मैच में हरा दिया। तानशाह हिटलर ने ध्यानचंद को बुलावा भेजा। अगली सुबह ध्यानचंद हिटलर के सामने थे। हिटलर ने ध्यानचंद के कैनवास के जूतों पर नजर डाली। 

हिटलर : आप और क्या करते हैं, जब हॉकी नहीं खेल रहे होते?
ध्यानचंद : मैं सेना में हूं।
हिटलर : आपकी रैंक क्या है?
ध्यानचंद : मैं लांस नायक हूं।
हिटलर : जर्मनी आ जाओ और मैं तुम्हें एक फील्ड मार्शल बनाऊंगा। (ध्यानचंद सोच में थे यह शक्तिशाली जर्मन सेना के सुप्रीम कमांडर का निर्देश था या प्रस्ताव)
ध्यानचंद हिटलर की आंखों में देखकर बोले- भारत मेरा देश है, और मैं वहां ठीक हूं।
हिटलर की जवाब सुन ध्यानचंद के कैनवास के जूतों से हट गई। वह मुड़ते हुए बोले- जैसा कि यह आपकी पसंद है।

झांसी में लगी है ध्यान चंद की प्रतिमा

प्रयागराज में जन्मे हॉकी लीजैंड ध्यान चंद के पिता सरकारी नौकरी में थे। इस वजह से उन्होंने अपना ज्यादातर समय झांसी में बिताया। झांसी में ध्यान चंद की याद में मूर्ति बनाई गई है। इसे झांसी के सबसे ऊंचे पहाड़ पर बनाया गया है। पूर्व मंत्री प्रदीप जैन ने इसका उद्घाटन किया था।

4 हाथों वाली मूर्ति अभी भी है रहस्य

90 के दशक में स्कूल प्रश्रावली में सवाल आया था- किस प्लेयर की ऑस्ट्रिया में चार हाथों वाली मूर्ति लगी है। सबसे स्टिक जवाब तब सभी को ध्यान चंद ही सूझा। बाद में पता चला कि एक बार ध्यान चंद के बेटे अशोक कुमार ने मीडिया में कहा था कि मेरे पिता मौत के बाद ज्यादा मशहूर हुए। खासतौर पर ऑस्ट्रिया में तो हॉकी प्रेमियों ने उनकी चार हाथों वाली मूर्ति भी लगाई। हालांकि यह मूर्ति ऑस्ट्रिया के वियना में कहां है इसके बारे में किसकी कुछ नहीं पता। न ही किसी के पास उक्त मूर्ति की फोटो है।

भाई रूप सिंह भी माने गए ‘लॉयन’

ध्यान चंद से जब एक बार पूछा गया कि दुनिया में उनसे अच्छा हॉकी प्लेयर कौन है तो उन्होंने रूप सिंह का नाम लिया जोकि उनका छोटा भाई था। 1928 ओलिम्पिक में दोनों साथ खेले थे। इसमें भारतीय टीम ने जापान को 11-1 तो अमरीका को 24-1 से हराया था। अमरीका के खिलाफ 10 गोल कर रूप सिंह ने दो मैचों में अपने गोलों की टेली 13 तक पहुंचा दी। इसके बाद लोकल मीडिया ने उन्हें लॉयन का नाम दिया। कई हॉकी दिग्गज अभी भी मानते हैं कि रूप सिंह ध्यान चंद से भी बेहतर थे।

Jasmeet