उत्पीड़न के मामले आने से माता-पिता बेटियों को खेल में आने के लिये प्रेरित नहीं करेंगे: खेल जगत

punjabkesari.in Sunday, Jun 19, 2022 - 05:39 PM (IST)

नयी दिल्ली, 19 जून (भाषा) भारतीय खेल जगत को डर है कि जिस देश में खेल को अब भी व्यवहार्य कैरियर विकल्प नहीं माना जाता है, वहां महिला खिलाड़ियों के उनके कोच द्वारा शारीरिक उत्पीड़न की घटनायें माता-पिता को अपनी बेटियों को स्टेडियम भेजने के लिये हतोत्साहित कर सकती हैं।

मौजूदा और पूर्व खिलाड़ियों की राय में अधिकारियों द्वारा इस तरह के मुद्दों को समझदारी से संभाला जाना चाहिए।

एक महिला साइकिलिस्ट ने हाल में स्लोवेनिया में अपने साथ हुई भयानक घटना साझा की थी जिसमें दल के मुख्य कोच ने उनके साथ शारीरिक उत्पीड़न का प्रयास किया था।

इस साइकिलिस्ट को भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) ने उनके अनुरोध पर देश वापस बुला लिया था और कोच को बर्खास्त कर दिया था जिनके खिलाफ जांच जारी है।

कई भारतीय एथलीट इस घटना से अब तक वाकिफ नहीं हैं लेकिन जब उन्हें इसके बारे में बताया गया तो उन्होंने काफी गुस्सा जाहिर किया।

देश की शीर्ष तीरंदाज दीपिका कुमारी ने अधिकारियों से महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का अनुरोध किया और सभी खिलाड़ियों से इस तरह की घटनाओं का बिना किसी डर के खुलासा करने की भी बात कही।

दुनिया की तीसरे नंबर की खिलाड़ी और तीन बार की ओलंपियन ने कहा, ‘‘ यह बहुत ही चौंकाने वाली घटना है। आपको ऐसे व्यक्तियों को निकाल देना चाहिए। खेल में हमारी संस्कृति काफी स्वतंत्र है जिसमें लड़कें और लड़कियां दोनों एक साथ अभ्यास करते हैं, एक छत के नीचे रहते हैं और सुरक्षित महसूस करते हैं। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘इन दिनों माता-पिता अपनी बेटियों को खेल में भेजने में हिचकते हैं। अगर इस तरह की घटनायें सामने आती रहीं तो वे उन्हें खेलों में भेजना बंद कर देंगे। इसलिये यह अधिकारियों पर है कि वे इन अपराधियों को खेल से दूर कर दें। सुरक्षा सबसे अहम है। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक खिलाड़ियों की बात है तो उन्हें बिना डर के अपनी बात बता देनी चाहिए। शायद वे करियर और ख्याति की चिंता करते हैं और कुछ मामलों में घटना को दबा देते हैं। लेकिन ऐसा करके आप इन कोच को और स्वतंत्रता दे रहे हो। ’’
साइ ने राष्ट्रीय खेल महासंघों से महिला खिलाड़ी के दल में होने की स्थिति में महिला कोच को शामिल करना अनिवार्य कर दिया है।

निशानेबाज मनु भाकर ने कहा कि यह चीज उनके खेल में पहले से ही मौजूद है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास हमेशा एक महिला कोच या मैनेजर होती है तो हमारे साथ दौरों पर यात्रा करती हैं। इसलिये मुझे लगता है कि प्रत्येक खेल यही चीज अपना सकता है ताकि महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। ’’
भारतीय टीम की पूर्व कप्तान और बीसीसीआई (भारतीय क्रिकेट बोर्ड) की शीर्ष परिषद की सदस्य शांता रंगास्वामी ने खेलों के चलाने के लिये ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को शामिल करने की वकालत की।

उन्होने कहा, ‘‘कर्नाटक क्रिकेट में, हमारे पास सभी आयु वर्ग के लिये महिला सहयोगी स्टाफ होता है। अगर ज्यादा महिलायें खेल में आयेंगी तो इससे माहौल ही सुरक्षित नहीं होगा बल्कि इससे उन्हें अपने कोचिंग करियर को संवारने में भी मदद मिलेगी। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रीय स्तर पर मैं उम्मीद करती हूं कि अगले पांच साल में हमारे पास भारतीय टीम में सभी महिला सहयोगी स्टाफ होगा। मुख्य कोच पुरूष हो सकता है लेकिन बाकी सहयोगी स्टाफ निश्चित रूप से महिला होनी चाहिए। ’’
कुछ एथलीट ऐसे हैं जिन्हें इस तरह की घटना के बारे में अब भी पता नहीं है।

विश्व चैम्पियनशिप की कांस्य पदक विजेता पहलवान सरिता मोर ने कहा, ‘‘नहीं, मैंने इस घटना के बारे में नहीं सुना। हम अपनी ट्रेनिंग में ही ध्यान लगाये रखते हैं। इस तरह की चीजें कुश्ती में नहीं होती। ’’
तीन बार की ओलंपियन तीरंदाज लैशराम बोम्बाल्या देवी ने कहा कि कोच नियुक्त करने की प्रक्रिया बेहतर होनी चाहिए ताकि इस तरह के कोच खेलों में प्रवेश ही नहीं कर सकें।

उन्होंने कहा, ‘‘तीरंदाजी में हमने कभी इस तरह की घटना का सामना नहीं किया। इस पर विश्वास करना मुश्किल है। इसे सुनकर बुरा लगता है। इस समस्या का हल है कि नियुक्ति से पहले कोच की अच्छी तरह जांच की जाये। किसी को नियुक्त करने से पहले समिति उसके ‘बैकग्राउंड’ की उचित जांच करे। ’’
भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान और राष्ट्रीय पुरूष टीम के कोच सरदार सिंह ने कहा कि इस तरह की घटनायें ‘भारतीय खेलों को बदनाम करती हैं’।

उन्होंने कहा, ‘‘साइ ने जो कदम उठाया है, वह स्वागत योग्य है। इसे पहले ही लागू किया जाना चाहिए था। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘हॉकी की बात करें तो खिलाड़ी हमेशा बड़े दल में यात्रा करते हैं। हम हमेशा महिला टीम के साथ एक महिला स्टाफ रखा करते थे। अब कोच (यानेके शॉपमैन) भी महिला हैं। ’’
लंदन 2012 ओलंपिक में भारतीय कोच रह चुके मौजूदा मुख्य तीरंदाजी कोच रवि शंकर ने कहा कि यह घटना कोचिंग जगत के लिये बड़ा दाग है।

उन्होंने कहा, ‘‘आप कोच हो, आपको इससे ग्लानि महसूस होना शुरू हो जाता है। कोच अपने शिष्य के लिये पिता तुल्य होता है। मैं 32 साल से कोचिंग दे रहा हूं। पहले मैं पुरूष टीम के साथ था और अब विभिन्न आयु वर्गों में महिला टीम के साथ हूं। दीपिका भी मेरे मार्गदर्शन में थी और उसने 16 साल तक मेरे साथ दौरा किया था। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘अब तक वह मुझे ‘पापा’ बुलाती है तो ऐसा ही संबंध होना चाहिए। गुरू और शिष्य में यही मानसिकता होनी चाहिए तभी आप सफल कोच बन सकते हैं। भरोसा बड़ी भूमिका निभाता है। ’’
बैडमिंटन खिलाड़ी पारूपल्ली कश्यप ने कहा कि ‘ऐसे व्यक्ति’ के लिये कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘अमेरिका जैसा देश भी इससे गुजर चुका है। महिला खिलाड़ी मानसिक रूप से मजबूत हैं, उन्हें तुरंत समस्या का निवारण ढूंढना चाहिए लेकिन कभी कभार वे शर्म महसूस करती हैं और बता नहीं पातीं। जब ऐसा होता है तो आप दबाव महसूस करते हो। ’’


यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

PTI News Agency